Wednesday, February 27, 2013

जनता की लाचारी

आज मैं आप सब के साथ एक कविता प्रस्तुत कर रहा हु जो मैंने ४ दिसम्बर १९९५ को लिखी थी।। 


जनता हुई हैं बड़ी लाचार,
सारी पार्टिया फैलाती भष्टाचार।।
ऐसे संकट में कौन करेगा उधार,
नेताओ को तो सिर्फ धन से प्यार।।
इसलिए हवाला और लाखुभई ठगी काण्ड होते हर साल,
डबवाली काण्ड भी  होते क्यों हर साल,
क्योंकि अस्पताल खुलते होने के बाद नरसंघार।।
जनता की सबसे बड़ी यह हैं लाचारी,
बड़ी पार्टिया के चलते आपस में तीर कटारी।।
वह खून खराबा खुद करवाते,
नाम जनता का हैं लगाते,
वोट मांगने के समय मस्का लगाते।।
ऐसे संकट में कौन लेगा अवतार,
जिससे देश का हो सिर्फ उद्ह्हार।।

 

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