हमारे देश ने १५ अगस्त १९९७ को आजादी के ५० साल पुरे किये थे। उस समय मैंने एक कविता लिखी थी, उसकी पंक्तिया इस प्रकार हैं:
आजाद परिंदा हुआ पचास का,
जिसका हमने इतिहास सुना था।
अंग्रेजो ने था बाण चलाया,
फिर २०० साल तक कैद में तडपाया।
नेहरु, गाँधी, सुभाष ने उससे मरहम लगाया,
फिर उससे कैद से मुक्त करवाया।
कैद से निकल वो चहचाया,
पर उसने सर, पीठ पर बार बार घाव खाया
फिर भी उसने शान्ति का मार्ग दिखाया,
तभी तो मेरा प्यार भारत कहलाया।।
अब जब भी मैं अपने बचपन में लिखी कविताएं पढता हु तो मुझे अक्सर लगता हैं की हम बचपन में जो कुछ भी करते हैं वो हमे बड़े होने के बाद बहुत ही अजीब लगता है।। बचपन में हमे यह परवाह नहीं होती की हमारी कविता या कोई रचना किसी को पसंद आ रही हैं या नही, शायद इसी लिए बचपन को सुन्हेरे पल कहा जाता है।।
आजाद परिंदा हुआ पचास का,
जिसका हमने इतिहास सुना था।
अंग्रेजो ने था बाण चलाया,
फिर २०० साल तक कैद में तडपाया।
नेहरु, गाँधी, सुभाष ने उससे मरहम लगाया,
फिर उससे कैद से मुक्त करवाया।
कैद से निकल वो चहचाया,
पर उसने सर, पीठ पर बार बार घाव खाया
फिर भी उसने शान्ति का मार्ग दिखाया,
तभी तो मेरा प्यार भारत कहलाया।।
अब जब भी मैं अपने बचपन में लिखी कविताएं पढता हु तो मुझे अक्सर लगता हैं की हम बचपन में जो कुछ भी करते हैं वो हमे बड़े होने के बाद बहुत ही अजीब लगता है।। बचपन में हमे यह परवाह नहीं होती की हमारी कविता या कोई रचना किसी को पसंद आ रही हैं या नही, शायद इसी लिए बचपन को सुन्हेरे पल कहा जाता है।।
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